न जाने क्या है सीने के अन्दर जो चुपके से टूट रहा है,
एक मेहरबान का हाथ जैसे हाथों से छूट रहा है।

लम्हा लम्हा गुज़र के दफ़न हो रहा है सीने में,
सह कर ये दर्द कुछ अजब मज़ा आने लगा है जीने में।

नजाने ये किस राह पे क़दम हमने बढाए हैं,
जाना था किस मंजिल पर, नजाने किस और निकल हम आये हैं।

एक खलिश है दिल को घेरे, एक अजब सी खामोशी चाई है,
इन चुभती तनहाइयों में आज याद किसी की बोहोत आई है.
याद किसी की बोहोत आई है।

शेर-ओ-शायरी में एक अलग मज़ा है,
जैसे इश्क एक हसीं सजा है,
जहा मिलन पे जितनी खुशी, उतना हे जुदाई पे होता है गम,
तभी आशिक बनता है शायर, और शायरी उसकी सनम।